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सुशांत की आत्महत्याः युवाओं के लिए कठोर सबक – प्रो ऋषिपाल

चंड़ीगढ़,(आवाज केसरी)। मनुष्य को समस्त प्राणियों में सबसे विकसित, बुद्धिमान,तथा विवेकशील माना जाता है। अगर मनुष्य तथा अन्य प्राणियों की समझ की तुलना करके देखें तो जिस प्रकार का जीवन मनुष्य जी रहा उससे तो लगता है कि अन्य प्राणी वर्ग में कोई भी जीव-जन्तु ऐसा नहीं है जो मनुष्य की बुद्धिमता के कही समीप भी हो। अन्य प्राणियों के बौद्धिक विकास के मुल्यांकन से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि गैर मानवीय प्राणियों में उनकी समझ तथा बुद्धि का एक सीमा तक विकास होकर रह गया है तथा ये जीव जंतु अपनी सीमित बुद्धि के सहयोग से ही अपना जीवन जी रहे हैं। परन्तु मनुष्य के मामले में ऐसा नहीं है, मनुष्य की बुद्धि तथा विवेक का विकास सतत् चल रहा है।

अगर आज से 100 साल पहले के मनुष्य तथा आज के मनुष्य के बौद्धिक उपयोग की तुलना की जाए तो उसमें काफी अन्तर है। आज का मनुष्य पूर्व के मनुष्य से बौद्धिक विकास के मामले में काफी आगे दिखाई देता है। मनुष्य के बौद्धिक विकास का सीधा सीधा संबंध उसके जीवन जीने की गुणवत्ता से है। अगर जीव जन्तु तथा प्राणी वर्ग के जीवन को देखा जाए तो वे सब उनके पास उपलब्ध बुद्धि का समुचित तथा उपयुक्त उपयोग करते हुए अपने जीवन को स्वस्थ, सुरक्षित तथा सुखमय जीने का प्रयास करते हैं। कोई भी प्राणी अपनी बुद्धि का उपयोग अपने स्वयं के नुकसान के लिए तो शायद ही करता हो। चींटी से लेकर हाथी तथा व्हेल मछली तक सब अपनी बुद्धि सामर्थ्य का उपयोग स्वकल्याण के लिए करते हैं। परन्तु मनुष्य के मामले में यह बात सत्य नही है क्योंकि मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग स्वयं तथा अन्य के कल्याण एवं विनाश दोनों के लिए करता है। मनुष्य द्वारा किया गया निर्माण स्वयं उसके तथा प्रकृति के लिए ना सिर्फ कल्याणकारी है बल्कि काफी मामलों में विधवंशकारी भी हैं।

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प्रोफेसर ऋषिपाल, डीन मानविकी एवं एप्लाइड साइंसेज,
एसवीएसयू, हरियाणा

मनुष्य बौद्धिक तौर पर सामर्थयवान, कल्याणकारी, तथा रचनात्मक होते हुए भी कई बार अपनी बुद्धि का उपयोग स्वयं, दूसरों, तथा प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए भी करता है। हद तो तब होती है जब मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग स्वयं को ही मिटाने जैसे निर्णय को करने के लिए करता है। ऐसा आमतौर पर कोई मनुष्य तब करता है जब वह निश्चित तौर पर किसी खास वस्तु या व्यक्ति की प्राप्ति पर ही जीवन जीने की शर्त के साथ जीने की कोशिश करता है तथा ऐसा ना होने की स्थिति में वह स्वयं को ही मिटा देना उचित समझता है। वास्तविकता में यह एक कुंठित, अवसाद ग्रसित तथा बीमार मानसिकता है, इसका इलाज होना चाहिए। इस मानसिकता का उचित तथा स्थाई उपाय किसी भी व्यक्ति के बचपन से लेकर बड़ा होने तक उसे किस प्रकार की परवरिश, संस्कार तथा प्रशिक्षण दिया गया है पर काफी हद तक निर्भर करता है।

उपरोक्त विमर्श वर्तमान में एक युवा फिल्मी सितारे सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने के संदर्भ को ध्यान में रख कर किया गया है। सुशांत एक कर्मशील, सफल, मेहनती एवं सतत् प्रयत्नशील अभिनेता थे। उनका 34 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर लेना ना सिर्फ उसके परिवार, समाज, फिल्मी दुनियाँ के लिए एक बहुत भारी आघात है बल्कि पुरजोर कोशिश के साथ विकास की ओर अग्रसर युवा वर्ग के लिए भी यह मायूसी का मामला है। जिस प्रकार से सुशांत के जीवन के बारे में जानकारी उपलग्ध है उससे पता चलता है कि सुशांत एक होनहार युवा थे उन्होने अपने जीवन में जो भी कार्य किया उसे पूरी मेहनत, लग्न तथा शिदद्त से किया। सुशांत ने किसी भी कार्य को ना सिर्फ पूर्ण सफलता के साथ अन्जाम तक पहुँचाया बल्कि उस कार्य के करने से अपार सफलता एवं शोहरत अर्जित की तथा खूब धन भी कमाया।

सुशांत का विद्यार्थि जीवन तथा उसके बाद का उनका प्रमुख अभिनय का जीवन सफलताओं से भरा है। सुशांत सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से होते हुए भी सफलता, धनार्जन तथा वैभवता की दुर्गम उच्चाईयों तक पहुँचा। जब सुशांत ने आत्महत्या की तो उनके पास वो सब था जो कि एक सामान्य व्यक्ति की सोच की पहुँच से भी कोसों दूर होता है। अगर सामान्य मनुष्य की सोच-समझ से अंदाजा लगाया जाए तो सुशांत जैसे सफल, धनवान, प्रसिद्धि तथा विशाल जन समूह के चहेते व्यक्ति का आत्महत्या करने का कोई कारण नही था। लेकिन अगर हम सुशांत की पिछले कुछ वर्ष की सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं का पुर्नांवलोकन करें तो उसमें कई जगह ऐसा प्रतीत होता है कि वह व्यक्ति कहीं ना कहीं मानसिक या फिर भावनात्मक तौर पर अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील था तथा इसी के कारण किसी बात से आहत था। सुशांत की इस अति संवेदनशीलता तथा आहत होने का कारण क्या था, दुनिया के लिए तो यह मुद्दा सुशांत के साथ ही चला गया। हो सकता है सुशांत का परिवार, उसके मित्र या फिर उसके निकट जानकार इस बारे में कुछ जानते हों। सुशांत की मृत्यु के बाद संचार माध्यमों ने तो अनगिनित कारणों की परिकल्पना की तथा उन परिकल्पनाओं को सही साबित करने के लिए बहुत सारे सही व गलत तथ्य भी खोज निकालने की कोशिश की, परन्तु सुशांत की मौत का वास्तविक कारण क्या था अब तक कोई भी संचार माध्यम या व्यक्ति, ऐसे भरोसे लायक तथ्य का खुलासा नहीं कर पाया जिस पर भारतीय समाज एकमत होकर विश्वास कर सकें।

सुशांत का परिवार भी अपने आपको अनभिग बताते हुए एक दूसरी ही परिकल्पना, सुशांत की हत्या; को प्रस्तुत कर रहा है। पुलिस ने अभी तक इस बारें में जो खोजबीन की है तथा प्राथमिक तौर पर पोस्टमार्टम के जो तथ्य उपलब्ध है उन सबसे यही प्रतीत होता है कि सुशांत ने आत्महत्या की है। वर्तमान में उपलब्ध तर्क, तथ्यों तथा जानकारियों को मद्देनजर रखकर अगर किसी निर्णय पर पहुँचने की कोशिश की जाए तो निष्कर्श में सुशांत का आत्महत्या करना ही प्रतीत होता है। अब अगर हम सुशांत के द्वारा आत्महत्या किए जाने के परिकल्पित प्रमुख कारणों पर गौर करे तो, यह तो निश्चित है कि सुशांत के दिलों दिमाग पर कोई बहुत भारी दबाव था और वह दबाव इतना प्रबल था कि उसने सुशांत की समझ और विवेक सब को मात दे उससे निर्णय करवाया कि जीने से मरना बेहतर है।

यहाँ दो परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं, प्रथम सुशांत का अति संवेदनशील होना तथा उसके कारण कमजोर होकर आत्महत्या कर लेना तथा दूसरा सुशांत को किसी के द्वारा आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाना। लेकिन निष्कर्ष में यह विचारणीय है कि ऐसा क्या हुआ होगा कि एक श्रेष्ठ बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति के लिए आने वाला पल जीने के लायक ही नही बचा। मन में ऐसी क्या उथल-पुथल होती है कि मन ऐसा निर्णय कर लेता है कि जिस शरीर के कारण उसका अस्तित्व होता है उसी शरीर को समाप्त करने का निर्णय। अगर इस आत्महत्या मामले की सूक्ष्मता से जाँच की जाए तो सुशांत के अत्यन्त निजी जीवन तथा दूसरा उसके कार्यक्षेत्र में कुछ ऐसा हुआ/या फिर नही हुआ जिसने सुशांत को आत्महत्या करने जैसे कठोरतम तथा जघन्य कृत को करने का निर्णय करवाया। अगर अन्तरंग जीवन की बात करें तो इसकी बिल्कुल सही जानकारी तो सुशांत ही दे सकता था या फिर उसके अत्यन्त निकट सम्बंधी व परिवारगण दे सकते हैं।

सुशांत तो अब है नही, परिवार ने जो सम्भावनाएँ व्यक्त की है वह तो स्पष्ट यह व्यक्त करती है कि सुशांत के कार्यक्षेत्र के कारण उसकी हत्या हुई है। समस्त कारणों पर गौर करने पर एक ही परिकल्पना को बल मिलता है कि सुशांत के कार्यक्षेत्र में लगातार कुछ ऐसा होता रहा या फिर नही हुआ कि उसने सुशांत को आत्महत्या के लिए मजबूर किया। कार्यक्षेत्र में क्या हुआ होगा इसके लिए उसके घर परिवार ने, निकट संबंधियों ने तथा अन्य लोगों ने भी मनतवय व्यक्त किए तथा बड़े से बड़े एवं प्रतिष्ठित सिने सितारों ने भी अनेक प्रकार की आशंकाएँ व्यक्त की। ये सब आशंकाएँ बहुत ही गंभीर आरोप की शक्ल लेती हैं। अगर सचमुच सिने जगत में ऐसा कुछ हो रहा है तो यह न्याय संगत नहीं है और इस पर कार्यवाही होनी चाहिए।

लेकिन अगर इस मामले दूसरे मूल बिन्दू पर ध्यान दिया जाए तो प्रश्न उठता है कि क्या सफलता, शोहरत तथा विकास की ऊंचाइयां बिना रूकावटों, परेशानियों तथा बाधाओं के प्राप्त हो सकती है। जीवन एक संघर्ष है और इसमें कारण से या फिर बिना कारण के भी रूकावटें आ सकती हैं। जो लोग नौकरी करना चाहते ह,ैं उनको भी नौकरी पाने में तथा नौकरी पा जाने के बाद कार्य करने में गला काट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा जो व्यक्ति व्यवसाय करते हैं, उनके लिए तो ना सिर्फ गला काट प्रतिस्पर्धा है बल्कि उन्हें तो वार गेम को झेलना पड़ता है। और फिर फिल्मों के व्यवसाय को तो फिल्म इंडस्ट्री कहा जाता है। यहाँ तो प्रतिस्पर्धा के सब आयाम होगें जो किसी भी उद्योग में होने चाहिए। अगर कोई व्यक्ति फिल्मों के व्यवसाय में किस्मत आजमाना चाहता तो उसे इस व्यवसाय में जो भी न्याय संगत है तथा अन्यायकारी है उस सबका सामना करना होगा।

यह स्थिति केवल फिल्मों में काम करने वालों के लिए नही है, यह तो हर किसी भी कार्यक्षेत्र में हैं। मनुष्य जितना विकसित होता जा रहा है उसका जीवन उतना ही प्रतिस्पर्धाकारी होता जा रहा ह,ै और उसमें अगर प्रतिस्पर्धाओं के स्तर के बारे में बात करें तो वह बाहुबल, बुद्धिबल, राजनीति, कूटनीति, छलबल तथा अन्य सब प्रकार तथा स्तर की होती है। अगर आज के दिन कोई व्यवसायी, रोजगारशुदा तथा अन्य प्रकार का कार्य करने वाला व्यक्ति ये सेचे की उसके साथ बाहुबल, बुद्धिबल, राजनीति कूटनीति तथा छलबल को प्रयोग नहीं होगा तो यह एक अकल्पनीय अवस्था होगी। अगर आप अपने कार्यक्षेत्र में लोगों को पीछे छोड़कर आगे निकलना चाहते हैं तो आपके साथ सब प्रकार के बलों का प्रयोग होगा और लोगों द्वारा प्रयोग किए जा रहे हैं। इन सब प्रकार के बलों एवं छलबलों का सामना तो करना ही होगा।

सुशांत की आत्महत्या के बाद कितने ही अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने आगे आकर बताया कि किस प्रकार से अनैतिक, अन्यायकारी, छलबल, कूटनीति तथा राजनीति का प्रयोग कर उनको आगे बढ़ने से रोका जा रहा है। परन्तु जिस किसी ने भी इस प्रकार से खुलासा किया वो सब भी तो डटकर तथा खड़े होकर इस सबका सामना कर रहें हैं। अगर आज का कोई भी मनुष्य वर्तमान युग की विकास की अन्धी दौड़ का हिस्सा है तो उसे इस सबका सामना करना होगा तथा इस सबका सामना करने के लिए स्वंय को तैयार करना होगा। आगे आने वाली पीढ़ियों के माता-पिता, शिक्षक तथा समाज को युवाओं को और मजबूत बनाना होगा। युवाओं की किसी भी प्रकार की परिस्थिति का समाना करने के लिए तैयार करना होगा। किसी भी युवा को किसी भी काल में ऐसी परिस्थितियाँ नही मिलेगीं जहाँ वे बिना छलबल तथा गन्दी राजनीति व कूटनीति का सामना किए बिना सफलताओं को पा सकें।

प्रोफेसर ऋषिपाल, डीन मानविकी एवं एप्लाइड साइंसेज,

एसवीएसयू, हरियाणा (लेखक के स्वतंत्र विचार)  

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