चंड़ीगढ़,(गुरूदत्त गर्ग) । कथा व्यास श्री वासुदेव कृष्ण जी महाराज ने आज भक्तों को बताया कि भागवत कथा कोई ग्रंथ नहीं है, कोई पुस्तक नहीं है,कोई पोठी नहीं है,ये साक्षात कृष्ण हैं। उन्होंने बताया कि व्यास जी के द्वारा भागवत की रचना करते समय चार वेद, 17 महापुराण,महाभारत के बाद श्रीमद् भागवत जी की रचना की थी। जिसको 18 महापुराण कहा जाता है।
महाराज ने गांव झाडसेतली में चल रही भागवत में आये श्रद्धालुओं को श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मिलने वाले फल और इस कथा की शुरूआत कैसे हुई इसके बारे में विस्तार से समझाया। बताया कि जिस प्रकार पत्थर एक बार हथोड़ा मारने से नहीं टूटता बल्कि बार बार प्रहार करने से टूटता है। उसी प्रकार एक बार की बजाय बार-बार भागवत सुनने से भक्त का भगवान से मिलन हो जाता है। कहा कि मनुष्य को सभी तीर्थों की परिक्रमा का फल मिलने के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए हमें भागवत कथा को सुनकर उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
कथा व्यास श्री वासुदेव कृष्ण जी महाराज ने बताया कि भागवत कथा का ज्ञान ही जीवन का आधार है। उनके द्वारा भगवान श्री कृष्ण के दिव्य नामो का अर्थ बताया। उनके जप एवं स्मरण के महत्व को बहुत सूक्ष्म रूप से समझाया। श्रोताओं को यह सब भी बोध कराया। संपूर्ण प्राणी मृत्यु व समस्या से ग्रस्त है। सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक मात्र उपाय है भगवन का संकीर्तन। कथा वाचक ने राजा परीक्षित की कथा सुनाते हुए उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा कि कलयुग के सम्पूर्ण दोषों का वर्णन किया गया है जो मात्र कृष्ण के स्मरण से सभी दोषों से मुक्त हो जाता है। मौके पर प्रभु के भजनों का आनंद लिया।