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पद्म विभूषण और जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज नहीं रहे, जानें – हरियाणा से क्या नाता रहा

पद्म विभूषण और जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज नहीं रहे

नई दिल्ली, (आवाज केसरी) । भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक पंडित जसराज का सोमवार को निधन हो गया है। उनका निधन अमेरिका के न्यू जर्सी में हुआ है। वो 90 साल के थे। पंडित जसराज के निधन से संगीत जगत को बड़ी क्षति पहुंची है। पीएम मोदी ने उनके निधन पर गहरा दुख जताया है और उनके साथ की फोटो भी पीएम मोदी ने ट्विटर पर शेयर की है।

भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में पड़ा गहरा प्रभाव : पीएम मोदी

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भारत के प्रधान मंत्री नरेद्र मोदी ने पद्म विभूषण और जाने-माने शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के ट्वीट के साथ फोटो शेयर करते हुए कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण निधन से भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में एक गहरा प्रभाव पड़ा है। न केवल उनकी प्रस्तुतियां उत्कृष्ट थीं, उन्होंने कई अन्य गायकों के लिए एक असाधारण गुरु के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। दुनिया भर में उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति गहरी संवेदना है।

पंडित जसराज के बारे में जानिए खास बातें

 पंडित जसराज ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया में शास्त्रीय संगीत की परंपरा को पहुंचाने का काम किया।

हरियाणा से नाता

आपको बता दें कि पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के पीली मंदोरी गांव में हुआ था । जो पहले हिसार जिले के अंतर्गत आता था। लेकिन अब फतेहाबाद जिले के अंतर्गत है। उनके परिवार की चार पीढ़ीयां शास्त्रीय संगीत परंपरा को  लगातार आगे पहुंचाती आ रही थीं। गायकी के लिए मशहूर पंडित जसराज मेवाती घराने से जुड़े थे। पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम भी मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे।

जब पंडित जसराज महज तीन-चार साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। बताते हैं कि 14 साल की उम्र तक वो सिर्फ तबला सीखते थे। इसके बाद उन्होंने गायकी में कदम रखे और बाकायदा इसकी तालीम ली।  फिर उनकी संगीत यात्रा इतनी खूबसूरत बनी कि साढ़े तीन सप्तक तक शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता रखने की मेवाती घराने की विशेषता को आगे बढ़ाया। पंडित जसराज की शादी फिल्म डायरेक्टर वी शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से हुई थी।

कैसे बने गायकी के रसराज

पंडित जसराज ने स्वयं एक इंटरव्यू में बताया था कि संगीत की राह पर मेरी शुरुआत तबले से हुई थी। जब वो महज चौदह साल के थे, तभी उनका गायकी की तरफ रुझान हुआ। इसके पीछे वो एक घटना का जिक्र करते थे। उन्होंने बताया कि साल 1945 में लाहौर में कुमार गंधर्व के साथ वो तबले पर संगत कर रहे थे। कार्यक्रम के अगले दिन कुमार गंधर्व ने उन्हें डांटते हुए कहा कि जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो, तुम्हें रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता। वो बताते थे कि इसी एक घटना के बाद से वो तबले को भूलकर गायकी और सुरों की दुनिया की ओर मुड़ गए।

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