पलवल,5 फरवरी (गुरुदत्त गर्ग)। गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म महाविद्यालय में अर्थशास्त्र एवं रसायन विभाग के तत्वाधान में उच्चतर शिक्षा निदेशालय (DGHE) द्वारा स्वीकृत “एक स्थायी खाद्य भविष्य” जैविक खेती और खाद्य प्रसंस्करण विषय पर एक दिवसीय बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को महाविद्यालय की प्रबंधक समिति के प्रधान महेंद्र कालडाएडवोकेट ने मुख्य अतिथि के रूप में सुशोभित किया ।
सरस्वती वंदना एवं दीप प्रज्वलन से आरंभ हुए इस सत्र को माननीय प्रधान कालडा, मुख्य वक्ता आरसी विश्वविद्यालय आसेला, यूथियोपिया, अफ़्रीका के प्रोफेसर डॉ सुभाष शर्मा जी एवं दूसरी मुख्य वक्ता गार्गी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ गीता सैनी , प्रबंधक कमेटी के वरिष्ठ सदस्य श्री राजेंद्र कालडा, प्राचार्य डॉ नरेश कुमार , श्रीमती प्रतिभा सिंगला, सम्मलेन के संयोजक डॉ एस एस सैनी एवं कोऑर्डिनेटर डॉ अंजू ने मंच को सुशोभित किया। प्राचार्य डॉ नरेश कुमार ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।
कोऑर्डिनेटर डॉ अंजू ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के उद्देश्य से अवगत कराया। मुख्य अतिथि श्री महेंद्र कालडा ने अपने उद्धाटन भाषण में जैविक कृषि की उपयोगिता के विषय में बताते हुए सरकार द्वारा इस क्षेत्र में हो रहे प्रयत्नों से अवगत कराया। मुख्य वक्ता डॉ सुभाष शर्मा ने कृषि और प्रसंस्करण में स्थिरता के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने स्थानीय किसानों को समर्थन देने और लंबी दूरी के परिवहन को कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ. शर्मा ने पर्यावरण-अनुकूल रणनीतियों और संसाधनों के जिम्मेदार प्रबंधन के महत्व पर भी प्रकाश डाला। डॉ. शर्मा के मुख्य भाषण में नई प्रसंस्करण विधियों की शुरूआत करने के भी चर्चा की गई ।
मुख्य वक्ता डॉ गीता सैनी जी ने भविष्य से समझौता किए बिना वर्तमान जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए टिकाऊ खाद्य उत्पादन के विषय पर चर्चा की। उन्होंने खाद्य उत्पादन में 56% वृद्धि की आवश्यकता, कृषि योग्य भूमि में कमी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी चुनौतियों पर प्रकाश डाला। डॉ. सैनी ने टिकाऊ खाद्य उत्पादन में तीन वैक्टरों – पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक – की भूमिका पर भी चर्चा की। इसके अलावा, उन्होंने भोजन की बर्बादी के मुद्दे पर बात करते हुए व्यक्तिगत और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर इसे कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अंत में, उन्होंने 2050 तक भारत के तीसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक बनने की क्षमता और देश में भोजन की बर्बादी के मुद्दे पर चर्चा की।
विशिष्ट वक्ता डॉ के. डी. शर्मा जी ने केवल प्राकृतिक अवयवों का उपयोग करके और हानिकारक तत्वों के बिना भोजन का उत्पादन करने में जैविक खेती के महत्व पर जोर दिया । इस सत्र के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन की प्रोसीडिंग्स का भी विमोचन किया गया। सत्र के अंत में संयोजक डॉ एसएस सैनी ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच का संचालन आयोजन सचिव डॉ वनिता सपरा द्वारा कुशलता से किया गया।
सम्मलेन के चार तकनीकी सत्रों में से दो सत्र ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम द्वारा करवाए गए जिस में यूनिवर्सिटी ऑफ़ पीपल ,यूएसए से डॉ प्रिया कपूर एवं डीए वी कालेज अमृतसर से डॉ जीवन ज्योति महिंद्रू ने सत्र अध्यक्ष के रूप में प्रतिभागिता की। विशेषज्ञों एवं विभिन्न राज्यों के महाविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुतीकरण से जैविक खेती की महत्ता का विश्लेषण किया गया।
प्रथम तकनीकी सत्र को सत्र अध्यक्षा डॉ पारुल खन्ना प्रोफेसर एवं वाईस प्रिंसिपल, आईएमटी, फ़रीदाबाद एवं रिसोर्स पर्सन डॉ रमन कुमार सैनी,सहायक प्रोफेसर जीजीडीएसडी महाविद्यालय ने संबोधित किया।
डॉ. रमन ने भोजन उत्पादन में जैविक खेती के महत्व पर जोर दिया। सत्र अध्यक्षा डॉ पारुल ने अपनी समापन टिप्पणी में प्रतिनिधियों को अपने समुदाय की भलाई के लिए अपने ज्ञान और विशेषज्ञता को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया। चौथे तकनीकी सत्र में विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थियों शोधकर्ताओं ने अपने शोध पत्र पोस्टर मध्यम से प्रस्तुत किए जिसकी अध्यक्षता डॉ सविता भगत सेवानिवृत्त प्राचार्या एवं रसायन शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ अंजू ने की।
समापन सत्र में राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ नरेंद्र कुमार ने मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर आसीन हुए। उन्होंने सम्मेलन के आयोजन की भरपूर प्रशंसा की। सम्मलेन में डॉ रुचिरा खुल्लर, प्राचार्या, राजकीय महाविद्यालय फरीदाबाद, डॉ अर्चना वर्मा, प्राचार्या, राजकीय महाविद्यालय पलवल, डॉ प्रेरणा शर्मा प्राचार्या, एनबी जीएसएम महाविद्यालय सोहना, डॉ अरुण भगत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। सम्मलेन में अमेरिका, कैनेडा, अफ़्रीका, मेक्सिको, जर्मनी, सिंगापुर,राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली,तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार आदि से शोधकर्ताओं ने प्रतिभागिता की।