धर्म डेस्क, (आवाज केसरी) । ज्योतिषाचार्य शैलेन्द्र सिंगला ने बुधवार को बताया कि भगवन्नाम कीर्तन महिमा कलियुग में ईश्वर प्राप्ति का सरल साधन है। कीर्तन तीन प्रकार से होता हैः व्यास पद्धति, नारदीय पद्धति और हनुमान पद्धति। व्यास पद्धति में वक्ता व्यासपीठ पर बैठकर श्रोताओं को अपने साथ कीर्तन कराते हैं। नारदीय पद्धति में चलते-फिरते हरिगुण गाये जाते हैं और साथ में अन्य भक्तलोग भी शामिल हो जाते हैं। हनुमत् पद्धति में भक्त भगवदावेश में नाम गान करते हुए, उछल-कूद मचाते हुए नामी में तन्मय हो जाता है।
श्री चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन प्रणाली नारदीय और व्यास पद्धति के सम्मिश्रणरूप थी।चैतन्य के सुस्वर कीर्तन पर भक्तगण नाचते, गाते, स्वर झेलते हुए हरि कीर्तन करते थे। परंतु यह कीर्तन-प्रणाली चैतन्य के पहले भी थी और अनादि काल से चली आ रही है। परमात्मा के श्रेष्ठ भक्त सदैव कीर्तनानंद का रसास्वादन करते रहते हैं।
यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना ।
तत्फलं लभते सम्यक्क़लौ केशव कीर्तनात् ।।
भावार्थः
जो फल तप, यज्ञ अथवा समाधी से भी प्राप्त नहीं होता है वह फल कलियुग में केवल भगवान के गुणगान/कीर्तन करने मात्र से प्राप्त होता है । अर्थात कलियुग में जो तप यज्ञ, समाधी अदि करने में असमर्थ है वह भगवान् के गुणगान/कीर्तन/भजन करनेसे प्राप्त होता है।