पलवल,21 दिसम्बर(गुरूदत्त गर्ग) । बात 1918 की है जब प्रोफेसर जी. एच. हार्डी, श्रीनिवास रामानुजन का हाल-चाल लेने लंदन के एक क्लिनिक में आये थे। हार्डी ने कहा कि वह टैक्सी नंबर 1729 में आये है और नंबर को “एक नीरस नंबर” बताया। रामानुजन ने इसका उत्तर देते हुए कहा, “नहीं, हार्डी, यह एक बहुत ही रोचक संख्या है! यह दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में व्यक्त की जाने वाली सबसे छोटी संख्या है” :
1³ + 12³ = 1 + 1,728 = 1,729
9³ + 10³ = 729 + 1,000 = 1729
इस घटना के कारण संख्या 1729 को “रामानुजन-हार्डी संख्या” के रूप में जाना जाता है।
प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती मनाने के लिए मनाया जाता है। श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयम्बटूर के ईरोड नामके गांव में हुआ था। बचपन से ही रामानुजन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मात्र 12 वर्ष की उम्र से ही गणित के सूत्रों की खोज शुरू कर दी थी और सातवीं कक्षा में पढ़ाई करने के दौरान ही बीए के छात्र को गणित भी पढ़ाया करते थे। रामानुजन ने मद्रास में अपना प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित किया।
रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात सन 1913 में, उनके एवं लन्दन के प्रोफेसर जी.एच. हार्डी के बीच पत्रव्यवहार से हुआ। प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। रामानुजन ने समीकरणों और सर्वसमिकाओं से मिलकर लगभग 3,900 परिणामों का संकलन किया जिसमे पाई () के लिए अनंत श्रृंखला के सूत्र की खोज भी शामिल है जोकि कई एल्गोरिदम का मूलभूत आधार है :
रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए, जिसमे एक संख्या के विभाजन की संख्या p(n) के लिए सूत्र एक उल्लेखनीय परिणाम था। उदाहरण के लिए p(4) = 5 :
4 = 1 + 1 + 1 + 1
4 = 1 + 1 + 2
4 = 2 + 2
4 = 1 + 3
4 = 4
रामानुजन द्वारा सूचीबद्ध उच्चतम संख्या 6746328388800 है जिसमें 10080 विभाजन हैं। अपने विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि मिली। इसके बाद वहां रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद यह ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने। लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 32 वर्ष की अल्पआयु में 26 अप्रैल 1920 में उन्होने प्राण त्याग दिए। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था।
रामानुजन के नाम के साथ ही उनकी कुलदेवी नामगिरी का भी नाम लिया जाता है। रामानुजन पहले गणित का कोई नया सूत्र या प्रमेंय लिख देते थे लेकिन उसकी उपपत्ति पर उतना ध्यान नहीं देते थे। पूछे जाने पर वे कहते कि यह सूत्र उन्हें नामगिरी देवी की कृपा से प्राप्त हुए हैं। रामानुजन का आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। उनका पुराना रजिस्टर जिस पर वे अपने प्रमेय और सूत्रों को लिखा करते थे 1976 में अचानक ट्रिनीटी कॉलेज के पुस्तकालय में मिला। करीब एक सौ पन्नों का यह रजिस्टर, जिसे बाद में रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना जाता है, आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है।मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा इसका प्रकाशन भी किया गया है।
भारत सरकार ने पहली बार 22 दिसंबर 1962 को श्रीनिवास रामानुजन पर डाक टिकट जारी किया था। बाद में, 2011 में उसी तारीख को नया डाक टिकट जारी किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 26 फरवरी 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के समारोह के उद्घाटन समारोह के दौरान 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाए जाने कि घोषणा की। रामानुजन की जीवनी पर देश विदेश में अनेक फिल्मों का निर्माण किया गया जिसमे 2015 में विदेशी निर्मित “दी मैन हू न्यू इन्फिनिटी” शामिल है। मात्र 32 वर्ष के अल्प जीवनकाल में उनके द्वारा गणितीय विश्लेषण, संख्या सिद्धांत, अनंत शृंखला में किये गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। रामानुजन के अन्य उल्लेखनीय योगदानों में हाइपर जियोमेट्रिक सीरीज़, रीमान सीरीज़, एलिप्टिक इंटीग्रल, मॉक थीटा फंक्शन और डाइवर्जेंट सीरीज़ का सिद्धांत आदि शामिल हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में आपने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया।