पलवल: हरियाणा सरकार का वर्ष 2024- 25 का बजट इस महीने पेश होने वाला है। यमुना बचाओ अभियान के संयोजक एवं जल विशेषज्ञ डॉ शिवसिंह रावत ने हमारे संवाददाता से विशेष बातचीत में बताया कि उन्हें हरियाणा सरकार के इस बजट से पर्यावरण संरक्षण तथा जल संरक्षण के क्षेत्र में जो अपेक्षाएँ हैं। जिन पर चर्चा करते हुए सबसे पहले बिगड़ते पर्यावरण संतुलन पर अपने विचार रखते हुए बताया की राष्ट्रीय वन नीतिके अनुसार देश के 33.3 प्रतिशत भू-भाग पर वन होने चाहिए। लेकिन देश के केवल 24.62 प्रतिशत भाग पर ही वन है। हरियाणा राज्य में वृक्षों का आवरण 1603 वर्ग किमी है। जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 3.63 प्रतिशत है। जोकि चिंता का विषय है। राज्य में सबसे कम वन क्षेत्रफल वाला जिला पलवल (13.56 वर्ग कि.मी.) है। यह काफ़ी गम्भीर समस्या है। बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और सिकुडते वन क्षेत्र समाज एवं सरकार को चेता रहे हैं कि समय रहते अधिक से अधिक पेड़ लगाएँ।
उपलब्ध जल संसाधनों पर चर्चा करते हुए बताया कि राज्य में जल संसाधनों को बचा कर रखना एक बड़ी चुनौती है। हरियाणा की एकीकृत जल संसाधन योजना (आईडब्ल्यूआरपी) के अनुसार राज्य में कुल पानी की उपलब्धता 21 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है जिसमें सतही जल, भूजल और उपचारित अपशिष्ट जल शामिल हैं और पानी की कुल मांग 35 बीसीएम है। यानि राज्य में वार्षिक जल की कमी 14 बीसीएम है। अतः जल संरक्षण अति आवश्यक है।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार हरियाणा प्रदेश के 3041 गांवों में भूजल उपलब्धता की गंभीर कमी है और भूजल स्तर की गहराई 20 से 30 मीटर से अधिक है। दूसरी ओर राज्य के कुछ हिस्सों में अधिक जल भराव से लवणता बढ़ रही है।
कृषि क्षेत्र सबसे ज़्यादा यानि लगभग 85% पानी का उपभोग करता है। राज्य में भूजल की कमी के लिए मुख्य रूप से धान की अधिक क्षेत्र में बुआई, पानी की अधिक खपत वाली फसल, खाद्यान्न उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता आदि जिम्मेदार हैं। कृषि क्षेत्र और फसल विविधीकरण में तकनीकी को अपनाने की बहुत जरूरत है। जल संरक्षण एवं जल उपलब्धता में सुधार के लिए सूक्ष्म सिंचाई के तहत क्षेत्र का विस्तार करना, चावल की सीधी बुआई पर जोर देना, प्राकृतिक खेती का प्रभावी कार्यान्वयन, उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग, भूजल पुनर्भरण और चैनलों का आधुनिकीकरण पर ज़ोर देना चाहिए।
फ़रीदाबाद, पलवल, गुड़गांव और मेवात जिले के जल संसाधनों पर चर्चा करते हुए बताया कि दिल्ली के ओखला बैराज से यमुना नदी का ज़हरीला पानी आगरा नहर और गुड़गांव नहर के माध्यम से लगभग 1.57 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिये इन चार ज़िलों में प्रयोग किया जाता है। जिससे गाँवों में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लोग पीड़ित हो रहे हैं। जल के बिना जीवन संभव नहीं है और यमुना का ज़हरीला पानी हमारी फसल और नश्ल दोनों को नष्ट कर रहा है।
इस क्षेत्र को रावी-ब्यास नदी का अपने हिस्से का पानी भी नहीं मिल रहा है। यमुना नदी से जो पानी मिलता है वह ज़हरीला है। गर्मियों में ओखला पर यमुना में औसतन 3000 से 5000 क्यूसेक पानी होता है। गर्मियों में इन चार ज़िलों को अपने 600-700?क्यूसेक शेयर में से केवल 400-450 क्यूसेक पानी आगरा कैनाल एवं गुड़गाँव कैनाल से मिल पाता है। किसान फसलों के लिए भूजल का दोहन करते हैं जिससे हर वर्ष 1 से 2 फुट जल स्तर नीचे जा रहा है।
दूसरी तरफ़ बारिशों के सीजन में यमुना का हज़ारों क्यूसेक पानी बाढ़ का क़हर मचाता बह कर चला जाता है। इस पानी के कुछ हिस्से को आसानी से रोक कर स्टोर किया जा सकता है। जो गर्मियों में पानी की कमी को पूरा कर सकता है तथा भूजल स्तर में सुधार कर सकता है।
अमृत काल में डॉ शिवसिंह रावत
सरकार से फरीदाबाद,पलवल, मेवात एवं गुड़गाँव ज़िले के लिए इस बजट से निम्नलिखित अपेक्षाएँ रखते हैं :
1 दिल्ली के ओखला बैराज से निकलने वाली आगरा कैनाल , गुड़गाँव कैनाल तथा गंदे नालों के पानी को साफ़ करने की परियोजनाएँ के लिए बजट का प्रावधान करें। इज़राइल, सिंगापुर जैसे छोटे छोटे देश भी गंदे पानी को साफ़ करके कृषि क्षेत्रमें प्रयोग में ला रहे हैं।
2 मानसून के मौसम के दौरान यमुना के अतिरिक्त बाढ़ के पानी को संरक्षित और संग्रहित करने और भूजल को रिचार्ज करने के लिए इसका उपयोग करने के लिए परियोजनाएँ लाए। मुख्य नदी मार्ग और हरियाणा की ओर नदी के दाहिनी ओर के क्षेत्र के बीच यमुना के बाढ़ क्षेत्र में जल निकायों/जलाशय एवं रीचार्ज कुओं के निर्माण के लिए वैचारिक योजना तैयार की जाएँ। ये बहते बाढ़ के पानी को संग्रहित करने और भूजल को रिचार्ज करने में सहायक होंगे।
3 यमुना के साथ साथ पौधारोपण परियोजनाएँ शुरू हों। पंचायती ज़मीनों, बंजर ज़मीनों पर पौधारोपण कार्यक्रम शुरू होनी चाहिए।