पिछले 13 दिनों से अपनी मांगो को लेकर नागरिक अस्पताल पलवल में हड़ताल पर बैठी आशा वर्करों और जिला प्रशासन में टकराव की स्थिति बन गई। जिला मुख्यालय पर लगातार धरना प्रदर्शन कर रही आशा वर्करों के शोर-शराबे और व्यवधान का आरोप लगाकर पुलिसबल बुलाकर आशा वर्करों को जिला अस्पताल परिसर से हटाने का प्रयास किया गया मगर आशा वर्कर वहां से तस से मस नहीं हुई। और अपने पूर्व निर्धारित समय पर धरना –प्रदर्शन करती रही, इस दौरान आशा वर्कर्स यूनियन की राज्य प्रधान सुरेखा ने भी सम्बोधित कर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी ।

एक और जहां स्वाश्थ्य सेवाओं से जुड़े हर कर्मचारी को प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना योद्धा का ख़िताब दिया गया। तो वहीं लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगो को लेकर हड़ताल पर बैठी आशा वर्करों को पिछले 13 दिनों से नागरिक अस्पताल में धरना दे रही आशा वर्करों को सिविल हॉस्पिटल स्थित जिला मुख्यालय को खाली करने के आदेश दे दिए गये और जिला उपायुक्त के आदेश पर नायब तहसीलदार रोहताश अपनी टीम के साथ पुलिस बल को साथ लेकर धरना स्थल पर पुहुँचे और आशा वर्करों को वहां से हटाने का आदेश दे दिया जिस पर आशा वर्करों में रोष फैल गया और उनके अपनी मांगे न माने जाने तक यही धरना दिए जाने की बात कही।

इस मौके पर धरना स्थल पर पहुंची आशा वर्करों की स्टेट प्रेजिडेंट सुरेखा ने कहा कि सरकार ने उनका आठ सेवाओं पर इंसेंटिव देना बंद कर दिया है। जिसकी वजह से उनकी मासिक आमदनी में काफी कमी आ गई है। साथ ही साथ प्रदेश सरकार के साथ वर्ष 2018 में एक समझौता हुआ था। जिसे सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है। सरकार ने आशा वर्क्स्रों का काम बढ़ाते हुए मोबाईल के जरिये ऑन लाइन करने के आदेश देकर सभी आशाओं को मोबाईल फोन की सिम तो दे दी लेकिन एंड्रायड फोन उपलब्ध नहीं कराया है । जिसके कारण मजबूरी में आशा वर्करों को हड़ताल पर बैठना पड़ा है।
उन्होंने कहां की यह हालत तो तब है जब आशा वर्करों को सरकार द्वारा कोरोना योद्धा घोषित किया हुआ है। उनका कहना है कि गत वर्ष तक उन्हें डी एन सी, एएनसी, डेथ बर्थ सर्टिफिकेट , हाउसहोल्ड सर्वे, ईसी कपल, बी एच एमसी आदि सर्विस इस पर 50% इंसेंटिव मिलता था। जिसे अब बंद कर दिया गया है। जिससे उनका करीब एक हजार रूपये मासिक आमदनी कम हो गई है । उनकी मांग है कि सरकार उनकी इन 8 सेवाओं पर इंसेंटिव को दोबारा शुरू करें तथा वर्ष 2018 में लागू समझौते को तुरंत लागू करे। उन्होंने बताया की जो हमें 1000 रुपये मिलते थे। वो भी कोविड 19 के चलते उन्हें बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा की सरकार ने हमें स्मार्ट फ़ोन देने का सरकार ने वादा किया। वो भी नहीं दिया गया। उनका कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगो को पूरी नहीं करती है। तब उनका धरना प्रदर्शन जारी रहेगा। उनका कहना है कि कोरोना आपदा के दौरान आशा वर्करों ने स्वास्थ्य कर्मियों के साथ मिलकर अपनी सेवाए दी। बावजूद इसके प्रशासन का यह रवैया अपनाया जाना उनके लिए बेहद तकलीफ देह है। उन्होंने कहा कि चाहे उन्हें जेल क्यों ना जाना पड़े। लेकिन अपने हक को लेने के लिए यही धरना देंगी। अब देखना यह कि जिला प्रशासन और प्रदर्शनकारियो का यह टकराव कहां और कब खत्म होता है। वः भी ऐसी सूरत में जबकि एनएचएम् कर्मचारी यूनियन से भी उन्हें अपना नैतिक समर्थन दे दिया है और यदि एनएचएम कर्मचारी हडताल पर उतर गई तो स्वास्थ्य सेवाओं की कमर ही टूट जाएगी ।

सिविल हॉस्पिटल पलवल एसएमओ डॉ. अजय माम
वहीं आशा वर्करों के हड़ताल पर चले जाने से अब स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कार्यो में कई तरह की परेशानियां स्वास्थ्य विभाग के सामने आ रही है। आशाओं के शोर शराबे से मरीजों को दिक्कतें हो रही हैं । इस बारे में जिला नागरिक अस्पताल के एसएमओ डॉक्टर अजय माम् ने बताया कि आशा के हड़ताल पर जाने से सर्वे का कार्य पर प्रभाव तो पड़ा है लेकिन काम बंद नही हुआ है ।क्योंकि आशा वर्कर केवल एएनएम की मदद करती है, काम तो एएनएम ही करती है उनके वह अपना काम ठीक तरह से कर रही है बस काम करने में उन्हें थोड़ा समय अवश्य लग रहा है । वही अस्पताल में धरना प्रदर्शन से होने वाले शोर शराबे को लेकर उन्होंने अस्पताल में आने वाले मरीजों और अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों के लिए बड़ी समस्या होने बताया। उनका कहना है कि अगर आशा वर्करों को अपनी मांगो को लेकर धरना प्रदर्शन करना ही तो वह किसी अन्य स्थान पर जाकर धरना प्रदर्शन करे। अस्पताल में इस तरह का धरना प्रदर्शन करना नियमों के विपरीत है।